इस स्थिति में पिता की संपत्ति पर बेटी नहीं कर सकती दावा, जानिए प्रोपर्टी से जुड़ा कानून Property Rights

By Meera Sharma

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Property Rights

Property Rights: भारतीय समाज आज भी पारंपरिक मूल्यों और पुरुष प्रधान सोच से गहराई तक प्रभावित है। सदियों से चली आ रही परंपराओं के अनुसार पिता की संपत्ति पर केवल बेटों का ही अधिकार माना जाता रहा है। इस सामाजिक व्यवस्था में बेटियों को पैतृक संपत्ति से वंचित रखा गया है और यह मानसिकता पीढ़ियों से हमारे समाज में बनी हुई है। आज भी कई परिवारों में यह धारणा प्रचलित है कि बेटी की शादी के बाद वह दूसरे घर की हो जाती है इसलिए उसे पिता की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलना चाहिए।

यह सामाजिक प्रथा न केवल महिलाओं के साथ भेदभाव है बल्कि उनके आर्थिक अधिकारों का भी हनन है। कई बार देखा गया है कि परिवार में बेटियों की आर्थिक स्थिति कमजोर होने पर भी उन्हें पैतृक संपत्ति से दूर रखा जाता है। इस पुरानी सोच के कारण महिलाओं को अपने अधिकारों से वंचित रहना पड़ता है और वे आर्थिक रूप से दूसरों पर निर्भर रहने को मजबूर होती हैं।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005: महिलाओं के लिए एक क्रांतिकारी कदम

भारतीय कानून व्यवस्था ने समाज की इस पुरानी सोच को बदलने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 के तहत पिता की संपत्ति में बेटियों को बेटों के बराबर अधिकार दिया गया है। इस कानून के अनुसार बेटी चाहे विवाहित हो या अविवाहित, उसका पैतृक संपत्ति में समान हक है। यह कानून न केवल हिंदू धर्म बल्कि सिख, बौद्ध और जैन धर्म को मानने वाले लोगों पर भी लागू होता है।

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इस कानूनी बदलाव का मतलब यह है कि अगर किसी पिता के एक बेटा और एक बेटी है तो दोनों को संपत्ति में बराबर का हिस्सा मिलेगा। यह संशोधन महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसलों में स्पष्ट किया है कि हिंदू परिवार में जन्म लेने वाली लड़की का जन्म से ही पिता की संपत्ति में बराबर का अधिकार होता है।

पैतृक संपत्ति में बेटियों के अधिकार की व्यापकता

कानून के मुताबिक बेटियों का अधिकार केवल पिता की व्यक्तिगत संपत्ति तक ही सीमित नहीं है बल्कि पैतृक संपत्ति में भी उनका समान हक है। पैतृक संपत्ति का मतलब वह संपत्ति है जो पीढ़ियों से पारिवारिक रूप से चली आ रही है। इस संपत्ति में बेटी का अधिकार जन्म से ही स्थापित हो जाता है और यह अधिकार पिता की मृत्यु के बाद भी बना रहता है। यह कानूनी व्यवस्था महिलाओं को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने और उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए बनाई गई है।

विवाहित बेटियों के मामले में यह स्पष्ट किया गया है कि शादी के बाद भी उनके अधिकार में कोई कमी नहीं आती। चाहे बेटी की शादी हो चुकी हो या वह अपने ससुराल में रह रही हो, उसका पिता की संपत्ति में हक बना रहता है। यह कानूनी सुरक्षा महिलाओं को वैवाहिक जीवन में आने वाली समस्याओं से निपटने में भी सहायक होती है।

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वसीयत की स्थिति में अपवाद

हालांकि कानून बेटियों को व्यापक अधिकार देता है, लेकिन एक महत्वपूर्ण अपवाद भी है। यदि पिता अपनी मृत्यु से पहले वसीयत बनाता है और उसमें बेटी का नाम शामिल नहीं करता है, तो ऐसी परिस्थिति में बेटी उस संपत्ति पर दावा नहीं कर सकती जो वसीयत के तहत आती है। यह नियम केवल पिता की व्यक्तिगत अर्जित संपत्ति के लिए लागू होता है न कि पैतृक संपत्ति के लिए। वसीयत में व्यक्ति को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति को अपनी इच्छा के अनुसार वितरित करने का अधिकार है।

इस कानूनी प्रावधान के कारण कई बार पारिवारिक विवाद भी उत्पन्न होते हैं। कुछ पिता अपनी पुरानी सोच के कारण वसीयत में केवल बेटों का नाम शामिल करते हैं जिससे बेटियों को नुकसान होता है। ऐसी स्थितियों में कानूनी सलाह लेना और अपने अधिकारों की जानकारी रखना आवश्यक हो जाता है।

सामाजिक जागरूकता की आवश्यकता

कानूनी बदलाव के बावजूद भी समाज में जागरूकता की कमी है। कई महिलाएं अपने कानूनी अधिकारों से अवगत नहीं हैं और वे अपने हक की लड़ाई नहीं लड़ पातीं। परिवारिक दबाव और सामाजिक ताने-बाने के कारण बेटियां अक्सर अपने अधिकारों का त्याग कर देती हैं। इस स्थिति को बदलने के लिए शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों की आवश्यकता है जो महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में जानकारी प्रदान कर सकें।

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सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं को मिलकर इस दिशा में काम करना चाहिए ताकि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों की महिलाओं तक यह संदेश पहुंच सके। कानूनी सहायता केंद्रों की स्थापना और महिला अधिकार संगठनों का सहयोग इस काम में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

अस्वीकरण: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी कानूनी मामले में विशेषज्ञ वकील से सलाह लेना आवश्यक है। कानूनी प्रावधान समय-समय पर बदलते रहते हैं, इसलिए नवीनतम जानकारी के लिए संबंधित कानूनी दस्तावेजों का अध्ययन करें।

पिता की संपत्ति में बेटियों के अधिकार को लेकर भारतीय कानून व्यवस्था ने एक प्रगतिशील रुख अपनाया है। हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है जो लैंगिक समानता को बढ़ावा देता है। समाज की पुरानी सोच को बदलने और महिलाओं को उनके वैध अधिकार दिलाने के लिए न केवल कानूनी सुधार बल्कि सामाजिक जागरूकता की भी आवश्यकता है। आने वाले समय में इस कानून का बेहतर क्रियान्वयन और सामाजिक स्वीकृति से महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा और समाज में लैंगिक न्याय स्थापित होगा।

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Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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